Sunday, January 19, 2014

चमत्कार - Miracles

चमत्कार - Miralces

चमत्कार आपके देखने की वह अवस्था है जब आप वस्तुओं और विधियों को इस रूप में देखते हैं कि उनके भीतर के सम्बन्ध को नहीं देख पाते हैं।

इस अवस्था में आप वस्तुओं को देख पाते हैं, परन्तु उन विधियों को नहीं देख पाते हैं जिन विधियों से वे वस्तुएँ प्राप्त हुई हैं। यही मानसिक चकराव चमत्कार है। यह हमेशा देखने वाले की आँख में होता है। वही एक वस्तु या विधि किसी एक व्यक्ति के लिये चमत्कार हो सकती है जबकि किसी दूसरे के लिये जो उसके पीछे के परिदृश्य को देख समझ पा रहा है वह वस्तु चमत्कार नहीं हो सकती।

किसी एक व्यक्ति के लिये रेडियो चमत्कार हो सकता है। एक ऐसी वस्तु जो ना जाने बिना मुँह और जीभ के भी विभिन्न स्वर निकाल सकता हैं। संगीत प्रस्तुत कर सकता है और हर बात जानता है। डिब्बे की शक्ल का है फिर भी आवाज़ मनुष्यों की तरह निकाल सकता है। हे प्रभु सब तेरी माया है। टीवी और इन्टरनेट भी ऐसे ही अन्य चमत्कार हो सकते हैं।

लेकिन तरंगों का अध्ययन कर चुके एक छात्र के लिए यह चमत्कार नहीं है। चुम्बकीय ध्रुवों के बीच तेजी से तारों की एक कुँडली घुमाई जाए तो एक ऐसा अनुभव पैदा हो जाता है जो दिखाई तो नहीं पड़ता परन्तु जिसके परिणाम दिखाई तो नहीं पड़ते परन्तु जिन्हें शरीर पर बहुत भीषणता से अनुभव कहते हैं। एक सामान्य जन के लिए यह ईश्वरीय प्रकोप से लेकर पिशाच साधना तक कुछ भी हो सकता है परन्तु भौतिक विज्ञान के छात्र के लिए यह मात्र एक विद्युतीय उत्प्रेरण है। वह रोज़ ऐसी घटनाएँ देखता पढ़ता है।

समझो कि यह देखने वाले की आँख में होता है। इस आँख से बाहर इसका कोई अस्तित्व नहीं है। यह भ्रम नहीं है जहाँ कुछ का कुछ दिखाई पड़ता हो। यह भ्रम से भिन्न एक अन्य अवस्था है। भ्रम का सम्बन्ध बाहर की वस्तु से होता है। चमत्कार का सम्बन्ध आपकी समझ से होता है। यही भ्रम और चमत्कार में अन्तर है।

प्रतिदिन चमत्कार सुनने में आते हैं। अमुक व्यक्ति के साथ चमत्कार घटित हुआ। उसने अमुक देवी या देवता या गुरू के परचे बँटवाए तो उसे अमुक अमुक लाभ प्राप्त हुए। आप भी बँटवाएँ और लाभ पाएँ। यहाँ मानवीय मस्तिष्क की बनावट का वाणिज्यिक उपयोग किया जा रहा है।
पहली तो बात यह कि इस चमत्कार प्रणाली को लाभ के साथ जोड़ दिया गया है। लाभ – जिसके लिए बहुत लोग बहुत कुछ कर सकते हैं वह भी बिना ज्यादा कुछ सोचे समझे हुए ही। जो अधिक खतरा उठा सकने वाले लोग हैं वे लाभ के लिए उन कामों को भी कर देते हैं जिन्हें सुसंस्कृत समाज स्वीकार नहीं करता और ऐसे अ-सुसँस्कृत कामों को अपराध भी कहा जाता है। तो जो अधिक दुस्साहसी लोग होते हैं वे लाभ के लिए अपराध भी कर देते हैं। लाभ में एक प्रेरक शक्ति हमेशा होती है। जो लोग उतने दुस्साहसी नहीं होते हैं वे अपराध तो नहीं करते हैं परन्तु ऐसे काम जरूर कर सकते हैं जिन्हें करने के लिये उनके पास पर्याप्त कारण नहीं भी होते हैं। यानी कि ये लोग यदि लाभ मिलता हो तो ऐसे काम भी कर सकते हैं जिन्हें अतार्किक कहा जाता है। ये भक्त लोग ऐसे ही वर्ग के सदस्य होते हैं। ये लाभ पाने के लिये तार्किक – अतार्किक कुछ भी कर सकते हैं।

दूसरी बात यह कि लाभ को एक उच्चतर प्रकार दिया गया है – दैवीय लाभ। यह भौतिक लाभ की अपेक्ष अधिक आकर्षक होता है। इसे पाने वाले के मन में एक उच्चता और विशिष्टता का एहसास होता है। तो यहाँ भी मानसिक पृष्ठभूमि तैयार कर दी जाती है कि लाभ मिलेगा और वह भी दैवीय लाभ। बस करना यह है कि एक सामान्य सा दिखने वाला काम कर दीजिए। और लोग काम कर डालते हैं। कई बार इसमें नकार भी डाल दिया जाता है। जिन लोगों ने परचे नहीं बँटवाए उनका अमुक अमुक नुकसान हो गया तो लोग लाभ पाने और नुकसान ना पाने के लिए अधिक उद्यत हो उठते हैं। यही इसका चमत्कार शास्त्र है।

क्योंकि इसके लिए एक अतार्किक विधि अपनाई गयी थी इसलिए उस विधि के परिणामों की मनमानी व्याख्या भी की जा सकती है। यदि कोई लाभ सामान्यतः भी हुआ हो तो उसे इस चमत्कार माला में पिरोया जा सकता है और अगर नहीं हुआ है तो बहुत आराम से ऐसी व्याख्या दी जा सकती है जिसमें दोष उस व्यक्ति का ही होता है जिसे लाभ नहीं मिला – जैसे कि उसकी नीयत में खोट हो सकता है या किसी पुराने कर्म का कोई फल हो सकता है।

सामान्य भाषा में कहें तो सब बकवास यहाँ चमत्कार के नाम पर की जा सकती है। इस तरह जो परिदृश्य अतर्क से भरा है वही चमत्कार से पूर्ण है। यह अतर्क ही चमत्कार है।

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